
नमस्कार दोस्तों,
आज फिर दिवाली के अवसर पर हम अपने बचपन के दिनों के दिनो को याद करते हैं जहां दिवाली ना केवल पांच दिनों का त्योहार होती थी बल्कि आने के 1 महीने पहले से ही चारों तरफ इस प्रकार व हर्षोल्लास हुआ करता था जो आज दिवाली पर देखने के लिए नहीं कम ही देखने को मिलता है पर देखने को नहीं मिलता। पहले दिवाली हर्षोल्लास से जीवन में प्रकाश के प्रवेश का त्यौहार हुआ करती थी जिसे हम भूलकर औपचारिकताओं में सिमटाये बैठे हैं।
इसी तथ्य को ध्यान में रखकर आपके सामने दीप पर्व के सच्चे मूल अर्थों में सार्थक करने के बहुत से तरीके हैं ताकि अब से हर दीपावली, हर तीज-त्यौहार व जीवन का हर दिन ऐसा हो जैसा उसे होना चाहिए।
1.दिवाली पर स्थानीय उत्पाद लायें :
14 वर्ष के वनवास के उपरान्त सीताराम सहित लक्ष्मण घर लौटे तो उनके स्वागत विदेशी सामग्रियों से करेंगे तो क्या वे प्रसन्न होंगे ? दीपक स्थानीय रूप से निर्मित ख़रीदें व कपूर सहित अन्य सामग्रियाँ भी यह जाँचकर ख़रीदें कि क्या ये विशुद्ध रूप से भारतीय हैं, हो सके तो स्वदेश-निर्मित से भी अधिक ज़ोर स्वग्राम-निर्मित होने पर दें ताकि आसपास के लोगों के घर, स्थानीय शिल्पियों व कलाकारों के घर आजीविका का प्रकाश फैले।
दूरस्थ बैठकर कठपुतलियों को नचाने वाले व पूँजीवादी व्यापारियों की जेबें क्यों भरना ? ‘स्थानीयता’ से ताज़गी भी रहती है एवं भण्डारण-यातायात-प्रदूषण व व्यावसायिक चक्रव्यूहों से मुक्ति भी रहती है जिससे स्थानीय कारीगर के साथ न्याय हो पाता है ।
2. मोलभाव न करें :
श्रमिक व निर्धन जन न जाने कितनी प्रतिकूलताओं में परिश्रम पूर्वक उत्पाद तैयार करते हैं फिर भी उनके साथ मोल भाव क्यों ? उन्हें कम कीमत पर बेचने के लिये अब से विवश न किया करें।
क्या आप शापिंग माल या किसी बड़ी पक्की दुकान में ऐसा करते हैं जबकि आपको पता होता है कि वहाँ लागत से काफ़ी अधिक लाभ विभिन्न बिचौलियों में बँटे होते हैं व निर्माता श्रमिक को कम लाभ दिया जाता है ? ‘दूर के ढोल सुहावने’ का अर्थ समझें एवं व्यावसायिक शृंखला व पूँजीपतियों के मकड़जाल में उलझे बिना मूल श्रमिक व मौलिक निर्माता से सीधे उसके उत्पाद ख़रीदे।

3. प्रदूषण रहित हो जायें :
लक्ष्मी जी विचरण कर रही होंगी तो क्या वे आतिशबाज़ी की दुर्गन्ध वाले आँगन में आना चाहेंगी ? क्या कृत्रिम चमक के रंगीन रसायनों से सजायी रंगोली से उन्हें सुख मिलेगा ? क्या श्रीरामभक्त हनुमान अपने पिता पवनदेव को प्रदूषित किये जाते देख कुपित नहीं हो जायेंगे ?
मिठाई व वस्त्र सहित हर वस्तु को क्रय करने से पहले दृढ़तापूर्वक पूछकर पुष्टि कर लें कि इसमें कहीं कोई रसायन या सांष्लेषक पदार्थ या विदेशी सामग्री तो नहीं ? इस दीपावली अपने आय के स्रोतों का भी शुद्धिकरण करें, प्रतिज्ञा लें कि अनुचित साधनों से धनार्जन नहीं करेंगे, न ही धन को विलासिता में उड़ायेंगे, इस प्रकार प्रदूषण रहित पूँजी से आप सच में लक्ष्मी पूजन के अधिकारी बन सकते हैं।
4. परिजन नहीं, अब परजन :
कोरोना या लॉकडाउन हो या न हो हर स्थिति में आप स्वयं देखें कि आपको घर जाने की आवश्यकता कहाँ है ? आपके परिवार में भीतर या उसके आसपास तो ऐसे कम से कम एक-दो अपने अथवा परिचित तो होंगे ही (अर्थात् परिवार के साथ होना आपके लिये जरुरी है ही नहीं.
आपके परिवार के लिये भी नहीं आवश्यक). आप तो उन अनाथों या वृद्धों के साथ तोरण-द्वार सजायें, पुष्प-मालिकाओं ने उनकी उजड़ी ज़िन्दगानी सँवारें जिन्हें उनके अपने जान-बूझकर छोड़ गये हैं अथवा किसी दुर्घटनावश उनके परिजनों से उनका वियोग हो गया है।
विशेषतः जीते जी जिनके तथाकथित अपने उन्हें अनाथाश्रम वृद्धाश्रम में छोड़ गये हैं उनके नेत्र तो हर तीज-त्यौहार अपने अपनों के आने की आहट में तो प्रतीक्षारत रहते होंगे व प्रतीक्षा करते-करते पूरी रात अंधकार में बीत जाती होगी परन्तु यदि आप उनके अपने बनकर हाथ बँटायेंगे, अपना अपनत्व जतायेंगे तो उससे उनको जिस प्रकाशपूर्ण प्रसन्नता की अनुभूति होगी उसकी ज्योति से आपको भी एक अद्भुत संतोष होगा जो आपको अपने स्वयं के घर जाकर कभी नहीं होने वाला।
इस दीपावली बस अड्डों व रेल्वे स्टेशन्स इत्यादि जाकर ज़रूरतमंदों को तलाशे जिनके सूने जीवन में आपके दिये कपड़ों व मिठाइयों से सुख के कुछ पुष्पों की सुगंध प्रसारित होगी। आपके अपनत्व की छुअन से उनको अभूतपूर्व हर्ष हो सकता है। ‘स्वपरिजनों के लिये तो पशु भी करते हैं. परजनों के लिये कुछ करें तो कोई बात हो, विशेषतः तीज-त्यौहारों के दौरान उनके साथ प्रत्यक्ष रहकर, न कि उपहार में सामग्रियाँ यांत्रिक रूप से बाँटकर बस पीछा छुड़ाकर।
आपकी प्रत्यक्ष उपस्थिति से प्रकाशोत्सव का यह प्रकाश यथार्थ रूप में वहाँ पहुँचेगा जहाँ उसकी आवश्यकता वास्तव में बहुत है। अपनी या स्वजनों की इच्छा को छोड़कर समग्र सार्थकता या ज़रूरतमंदों की आवश्यकता पर बल दें एवं मायके का मोह त्यागें तो इस प्रकार मनायी दीपावली के ही समान हर दिनचर्या सार्थक हो सकती है।
5.इंसानी व जीवसेवा सर्वोपरि :
पशु-पक्षी व पेड़-पौधे तो परमात्मा के प्रत्यक्ष अंश होते हैं जिन्हें दीपावली में और अधिक विशेष देखरेख की आवश्यकता होती है क्योंकि जल, भूमि व वायु के प्रदूषण सहित उन्हें ध्वनि-प्रदूषण से भी जूझना पड़ता है एवं उनके खाने-पानी की व्यवस्था करने वाले भी अपने-अपने जन्मक्षेत्र व मायके भाग चुके होते हैं। इन्हें खोज-खोजकर अपना उत्तरदायित्व निभायें, तार व कीलें पेड़ों से निकालें.
जीवनभर जाने कितने आम्रवृक्षों के पत्ते तोड़े होंगे, अब की बार कम से कम पाँच पेड़ लगाकर आजीवन उनकी रक्षा का संकल्प धारण करें. घायल पशुओं का उपचार करायें, ढूँढने पर भी घायल पशु-पक्षी न दिखें तो भी स्थानीय या सुदूर ग्रामीण अँचलों वाली गौशाला जाकर साधारण सेवा कार्य करें अथवा भूख-प्यास से भटकते अन्य पशुओं को भोजन-पान कराते रहें, उनके आसपास सफाई करें।
इस प्रकार अब के त्यौहार घर के साथ औरों के जीवन में भी खुशियां लाए।
लेखिका, शिक्षिका, समाज सेविका
डॉ.सारिका ठाकुर”जागृति”
ग्वालियर(मध्यप्रदेश)
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