मॉडर्न महिलाओं को देख कर 90℅ कौन ख़ुश होता है और मजे लेता है……
एक दिन किसी ख़ास अवसर पर महिला सभा का आयोजन किया गया, सभा स्थल पर महिलाओं की संख्या अधिक और पुरुषों की कम थी..!!
मंच पर तकरीबन *पच्चीस वर्षीय खुबसूरत लड़की मॉडर्न वस्त्रों से* *सुसज्जित, माइक थामें कोस रही थी पुरुष समाज को..!!*
वही पुराना आलाप…. कम और छोटे कपड़ों को जायज, और कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता का बचाव करते हुए, पुरुषों की गन्दी सोच और खोटी नीयत का दोष बतला रही थी.!!
तभी अचानक सभा स्थल से…बत्तीस पैंतीस वर्षीय सभ्य, शालीन और आकर्षक से दिखते युवक ने खड़े होकर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति मांगी..!!
अनुमति स्वीकार कर माइक उसके हाथों मे सौप दिया गया …. हाथों में माइक आते ही उसने बोलना शुरु किया..!!
“माताओं, बहनों और भाइयों, मैं आप सबको नही जानता और आप सभी मुझे नहीं जानते कि, आखिर मैं कैसा इंसान हूं..??
लेकिन पहनावे और शक्ल सूरत से मैं आपको कैसा लगता हूँ बदमाश या शरीफ..??
सभास्थल से कई आवाजें गूंज उठीं… पहनावे और बातचीत से तो आप शरीफ लग रहे हो… शरीफ लग रहे हो… शरीफ लग रहे हो….
बस यही सुनकर, अचानक ही उसने अजीबोगरीब हरकत कर डाली… सिर्फ हाफ पैंट टाइप की अपनी अंडरवियर छोड़ कर के बाक़ी सारे कपड़े मंच पर ही उतार दिये..!!
ये देख कर …. पूरा सभा स्थल आक्रोश से गूंज उठा, मारो-मारो गुंडा है, बदमाश है, बेशर्म है, शर्म नाम की चीज नहीं है इसमें…. मां बहन का लिहाज नहीं है इसको, नीच इंसान है, ये छोड़ना मत इसको….
ये आक्रोशित शोर सुनकर… अचानक वो माइक पर गरज उठा…
“रुको… पहले मेरी बात सुन लो, फिर मार भी लेना , चाहे तो जिंदा जला भी देना मुझको..!!
अभी अभी तो….ये बहन जी कम कपड़े , तंग और बदन नुमाया छोटे-छोटे कपड़ों की पक्ष के साथ साथ स्वतंत्रता की दुहाई देकर गुहार लगाकर…”नीयत और सोच में खोट” बतला रही थी…!!
तब तो आप सभी तालियां बजा-बजाकर सहमति जतला रहे थे..फिर मैंने क्या किया है..??
सिर्फ कपड़ों की स्वतंत्रता ही तो दिखलायी है..!!
“नीयत और सोच” की खोट तो नहीं ना और फिर मैने तो, आप लोगों को… मां बहन और भाई भी कहकर ही संबोधित किया था..फिर मेरे अर्द्ध नग्न होते ही…. आप में से किसी को भी मुझमें “भाई और बेटा” क्यों नहीं नजर आया..??
मेरी नीयत में आप लोगों को खोट कैसे नजर आ गया..??
मुझमें आपको सिर्फ “मर्द” ही क्यों नजर आया? भाई, बेटा, दोस्त क्यों नहीं नजर आया? आप में से तो किसी की “सोच और नीयत” भी खोटी नहीं थी… फिर ऐसा क्यों?? “
सच तो यही है कि….. झूठ बोलते हैं लोग कि…
“वेशभूषा” और “पहनावे” से कोई फर्क नहीं पड़ता
हकीकत तो यही है कि मानवीय स्वभाव है कि किसी को सरेआम बिना “आवरण” के देख लें तो कामुकता जागती है मन में…
रूप, रस, शब्द, गन्ध, स्पर्श ये बहुत प्रभावशाली कारक हैं इनके प्रभाव से “विस्वामित्र” जैसे मुनि के मस्तिष्क में विकार पैदा हो गया था..जबकि उन्होंने सिर्फ रूप कारक के दर्शन किये..आम मनुष्यों की विसात कहाँ..?
आज के समाज की सोच ये है कि अपने घर की बेटियां अपने बदन को ढके या ना ढके लेकिन बहु मुंह छिपाकर घुंघट में रहनी चाहिए आज के समाज में बदन ढकना जरूरी नहीं पर मुंह ढकना जरूरी है।
आज के समाज में घूंघट के लिए कोई जगह नहीं है वैसे ही इन अर्ध नग्न वस्त्रों के लिए भी कोई जगह नहीं है
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