उम्र बिना रुके सफर कर रहीं है,
और हम ख्वाहिशें लेकर वहीं खड़े है
तुम और तुम्हारी यादें
परछाई-सा साथ देती है
बिन कहे
पूरे सफ़र तक बात करती है
‘आरती’ को बयार-सा छूकर
तेरी और आने का फ़रमान जारी करती है
ये मेट्रो का सफ़र
राजीव चौक की भीड़ तक
तुम्हारे दीदार में राह टकती है
फिर आख़िरी स्टेशन पर
तुम्हें पाने का ख़याली पुलाव लिए
ये ‘आरती’
रोज़ एक नया सफ़र
यूँ ही अकेले तय करती हैं।।
-आरती वत्स
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