हाँ कोरी कल्पना से परे
मैं उस पुरुष से मिली हूँ
जिसकी कोई बात नहीं करता
जिसके त्याग
अच्छाई
ईमानदारी
प्यार और जिम्मेदारीपूर्ण रवैया की चर्चा
सरेआम कोई नहीं करता।।
हाँ कोरी कल्पना से परे
मैं उस पुरुष से मिली हूँ
जो पुरुषता को छोड़
एक इंसान हो चला है
एक मासूम तनय की भाँति
रति में अनुराग
और विराग में भी तअल्लुक खोजने चला है
बिना किसी आसरे के
अपनों में अनीक को
और ख़िलाफ़ हुए लोगों को भी आत्मीय करने चला है
गैरों से भी ख़ौफ़नाक लोगों पर यक़ीन कर
ताउम्र के लिए
खोखले रिश्तों की अशक्त पड़ी
डोर को मज़बूती से सींचने चल पड़ा है।।
मैं गर्व से कहती हूँ
हाँ कोरी कल्पना से पड़े
मैं उस पुरुष से मिली हूँ
जिसे तमाम लोग
कहानियों के माध्यम से सुनते हैं
अक्सर बस चर्चायें करते हैं
लेकिन तह तक न जाकर बस उसे दोषी करार करते हैं
उससे परे
मैं एक हसीन पुरुष से मिली हूँ
आज के सशक्त पुरुष से मिली हूँ।।
-आरती वत्स(स्वानुभव की स्याही से)
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