ख़ास खबर”
बचपन से बुढ़ापे तक
लड़ता है अपने
हालात से
आम आदमी।
कोई ख़बर नहीं बनती है।
बचपन से बुढ़ापे तक
दिल का हाल
बयां करने को
साथी बदलता है
ख़ास आदमी।
उसकी ख़बर रोज़ चलती है।
यही वेद है,
यही पुराण है।
बाइबिल भी,
यही कुरान है।
चर्चा होती है पैसे वालों की,
कलयुग का वही भगवान है।
इतिहास बनाते बनाते
इतिहास हो जाता है,
आम जन,
उसकी इतनी ही पहचान है।
अर्चना त्यागी
मौलिक, स्वरचित एवम् अप्रकाशित।
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