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मैं हास्य व्यंग्य के लिए जाना जाता हूँ पर यह कविता मेरे दिल के बहुत करीब है :राकेश जैन


दहेज
बापू काम से नहीं लौटा
लक्ष्मी भूखी सो गई
कविता
इतिहास के पन्नो में खो गई
सरस्वती निरक्षर है
पर गुणों की साक्षर है
विद्या तो पढ़ी लिखी थी
फिर क्यूं वो ब्याहने नहीं आया
-उसका पिता
दहेज़ नहीं दे पाया
अमृता ने विषपान कर लिया
बदनामी के डर से
चली गई थी धोखे में
एक दिन वो घर से
रश्मि धूमिल है
संध्या डूब गई
सुमन मुरझा गई
लता टूट गई
बिखर गई है माला
ठंडी हुई है ज्वाला
सीता तिरस्कृत है
मौहब्बत लूट गई
रो-रो के अंधी हो गई सुनयना
वाणी भी सदमें से गूंगी हो गई
सूख गई है गंगा
अब जमना की बारी है
चालीस की हो गई शुभागो
अभी तक कुंवारी है
शीला न बचा पाई अस्मत अपनी
करम जली की किस्मत अपनी
तृप्ति को प्यास है
चंचल उदास है
आशा को आज तक
पिया मिलन की आस है
अरे गीता पर भी कसे जाते हैं तंज
इसी बात का तो है रंज
दहेज की छुरी
ममता पे भी चल गई
दीपाली बुझ गई
रूपाली जल गई
तुम राष्ट्र की नव पीढ़ी हो
आसमानों की सीढ़ी हो
देश का कायाकल्प करो
नौ जवानों संकल्प करो
जात पात का परहेज नहीं
दुल्हन लायेंगे दहेज नहीं
लंगर सेवा के साथ अब रमनप्रीत कौर घर बैठे ही बुजुर्गों का बड़ा रही मनोबल – करोना महामारी के समय में रमनप्रीत द्वारा सीनियर सिटीजन को मोटिवेट करने के लिए मनवीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट का राकेश जैन बहुत-बहुत धन्यवाद करते है

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