एक सास ऐसी भी
==============
पोते की मालिश करते हुए दादी की नजर उसके खाली गले पर पड़ी तो वह गुस्से से चीख पड़ी, ‘‘बहू, ओ बहू….कहाँ मर गई…..अरे…मुन्ने के गले की चेन कहाँ गई?’’ आँगन में पड़े ढेर सारे झूठे बर्तनों को साफ करती बहू के हाथ रुक गए। उसने जल्दी से नल खोलकर हाथ धोया और फिर दौड़ी हुई आई, ‘‘माँजी…..कल मुन्ने के हाथ में फँस कर चेन टूट गई थी…..इसके पापा से सुनार के यहाँ भेज कर बनवा दूँगी….।’’
‘‘बड़ी आई बनवाने वाली…तेरी माँ से इतना भी नहीं हुआ कि कम से कम मुन्ने को तो कायदे की चीज देते….। अरे उन कँगलों ने तुझे कुछ नहीं दिया…..मेरे बेटे और मैंने तो अपने खोटे भाग्य पर संतोष कर लिया, पर यह मुन्ना….? बड़ा होकर यह भी उन भीखमंगों पर शर्मिन्दा होगा….। दे मुझे यह चेन…..इसे बेच कर मैं दूसरी बनवा दूँगी अपने मुन्ना राजा को।’
बहू आँचल से खोलकर अपनी सास को चेन दे ही रही थी कि तभी दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई। उसने जाकर दरवाजा खोला तो अवाक रह गई। सामने अपना सूटकेस लिए एकदम फटेहाल उसकी ननद खड़ी हुई थी। ननद ने भाभी को सामने देखा तो लिपट कर फफक पड़ी, ‘‘भाभी, माँ ने सचिन के जन्म पर जो सामान भेजा है, उसे खराब और सस्ता कहकर उन लोगों ने वापस कर दिया है और कहा है कि जब तक मैं बच्चे व उसके पापा के लिए सोने की मोटी चेन, घर के हर सदस्य के लिए पाँच जोड़ी कपड़े, बच्चे का पालना आदि, सासू और नंनद के लिए डायमण्ड की अगूँठी और इक्कीस टोकरी–फल अपनी माँ से लेकर न आऊँ, घर वापस न लौटूँ।
भाभी, अब तुम्ही मेरा सहारा हो….भैया से कहकर तुम्ही कुछ कर सकती हो…..मुझे मेरे बच्चे से अब तुम्ही मिला सकती हो…..माँ से तो कुछ होने से रहा अब..।’’ नंनद को वह सांत्वना दे ही रही थी कि तभी सासू माँ एकदम फट पड़ी,’’ हरामजादे…लड़के वाले है या लुटेरे….अरे, यहाँ कोई खजाना गड़ा है जो उन्हें लुटा दें….जितनी हैसियत होगी, आदमी उतना ही तो करेगा…। देखती हूँ तुझे वापस कैसे नहीं बुलाते….दहेज उत्पीड़न में फँसा न दिया तो मैं तेरी माँ नही…।’’
नंनद को अंदर कमरे की तरफ ले जाते हुए वह सोच रही थी कि अपनी बेटी पर बात आई तो एक माँ के चेहरे पर चढ़ा सास का यह मुखौटा कितनी जल्दी उतर गया !!
बहु ओर बेटी में फर्क न करे
इस रचना को लिखते समय मेरे आशु आ गये
PLZ Subscribe RN TODAY NEWS CHANNEL https://www.youtube.