हम भूल नहीं पाते बचपन, जब हम छोटे से थे घरके।
बरखा की सुहानी रातों में, ममता से भरी गोदी भरके।
तुतली बोली में तुतला कर हम मन की बात बताते थे।
जब माँ ममता बरसाती थी, हम अंक में छिप जाते थे।
खाते थे धरा पर माटी हम, जब हम घुटनों घुटनों सरके।
जब हम छोटे से थे घरके।
कुछ बड़े हुए कुछ समझदार, माँ हमको समझाती थी।
अज्ञानी छोटे से मन को, माँ ज्ञान का पाठ पढ़ाती थी।
आखिर स्कूल को भेज दिया, माँ उर हाय शिला धर के।
जब हम छोटे से थे घरके।
ममता की छाँव भरी छाया जीवन में सदा ही साथ रही।
माता का हाथ तो छूटा मगर ममता तो सदा ही साथ रही।
बचपन और माँ को याद नित्य करते हैं नयन नीर भरके।
जब हम छोटे से थे घर के।
करोना महामारी के समय में रमनप्रीत द्वारा सीनियर सिटीजन को मोटिवेट करने के लिए मनवीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट का मुनीश चंद्र सक्सेना देहरादून बहुत-बहुत धन्यवाद करते है