स्त्री
कितना ही चेष्टा करे,
उसके मन में यह भाव बना ही रहता कि कोई देखे ।
कोई न देखे तो उसे बड़ा दुःख होता है ।
वह अप्सरा हो कि न हो,
पृथ्वी की हो कि स्वर्ग की,
इससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता ।
कोई न देखे तो दुःख होता है ।
जिस दिन स्त्रियों को लोग नहीं देखते,
उस दिन स्त्रियों को लगने लगता है कि
बस अब काम से गये ।
बुढ़ापे का मतलब ही यही होता है
अब कोई नहीं देखता,
बुढ़ापा आ गया ।
स्त्री की “सुन्दरता” को
पुरुष जितना निहारते हैं
फिर कुछ लोग ये भी कहते है
की स्त्रीयो को देखो तो पुरुष को गलत
बोला जाता है हाँ ये, सही है लेकिन एक सत्य
ये भी है की स्त्री सजती साँवरति है तो पुरुषों के
लिए अपने पति के लिए अपने प्रेमी के लिए
और उसे उसका पति या प्रेमी देखता निहारता है तो
स्त्री में कामुकता व यौवन बढ़ता ही जाता है !!
शिखा….
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