
“चढ़ रहा विज्ञान के सोपान पर, स्वप्नदर्शी एक, नित नयी दुनिया बसाने के लिए l
धंस रहा दूजा चढ़ा नरबलि कहीं, पाप में पाखंड वामाचार में, स्वर्ग सा वैभव जुटाने के लिए l बांचता है ग्रन्थ तीजा मुग्ध हो, बेचता ईमान कौड़ी दाम पर, दीनता से हीनता से हर गली, पेट की ज्वाला मिटाने के लिए l
कर रहा है दक्ष रोने में कोई, बाल-बच्चों को चुराकर भीड़ से, अंग उनके तोड़ कर पंगु बना, राहगीरों से भरे बाज़ार में, हाथ फैला भीख पाने के लिए l
हैं यहाँ नारी निकेतन नाम के, दान देना ढोंग का व्यवहार है,
सभ्यता का नाम है अब नग्नता, मांस मदिरा और यौनाचार है,
ज्ञान खाता ठोकरें बाज़ार में छल कपट हैं मुख्य जीवन बनाने के लिए l
हर कोई टूटा हुआ बिखरा हुआ हर शहर में कर्णवेधी शोर है,गूँज यानों की कलों की गाड़ियों की रुग्ण तन मन क़ातिलों का ज़ोर है l
क्या कहें, कैसे कहें, किससे कहें, जी रहे हैं सिर्फ जीवन बिताने के लिए l
होड़ शस्त्रों की लगी हर देश में दोस्ती के नाम पर है छल भरा,
आस्तीन के साँप हैं घर घर यहाँ आदमी को आदमी है खा रहा,
गैस,धूएँ धूल से दूषित ज़मी मंद विष है “अरुण” अन्न में अब खाने के लिए l”
करोना महामारी के समय में रमनप्रीत द्वारा सीनियर सिटीजन को मोटिवेट करने के लिए मनवीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट का Dr Arun bhtt बहुत-बहुत धन्यवाद करते है