हमें तुम्हारा प्यार यदि मिल जाता तो
सौ जन्मों का पुण्य भी अर्पित कर देते
नहीं शेष अभिलाषा रहती जन्मों की
जन्म जन्म का नेह समर्पित कर देते
सागर से मोती चुनने को आतुर है
मन व्याकुल जब से तुमको अपनाया है
वसुधा से नभ तक की दूरी मापी है
तब जाकर तुमको आलम्ब बनाया है
करो यदि सन्देह हमारी श्रद्धा पर
आराधन सबका हम तर्पित कर देते
हमें तुम्हारा प्यार यदि मिल जाता तो
सौ जन्मों का पुण्य भी अर्पित कर देते
यदि मिले सानिध्य तुम्हारी स्वांसों का
सन्यासी मन को तप का फल मिल जाये
जितने स्वप्न, कल्पना निर्वासित बैठे ,
बढ़ें हृदय की ओर यदि बल मिल जाये
जो जग से हारा बैठा है उस मन को
तुम मिलते तो कितना दर्पित कर देते
हमें तुम्हारा प्यार यदि मिल जाता तो
सौ जन्मों का पुण्य भी अर्पित कर देते
स्थापित है प्रेम तुम्हारा ही मन में
क्यों पूजा के फूल तुम्हे स्वीकार नहीं
एक दृष्टि मैं कभी नेह की पा जाऊं
देते मुझको तुम इतना अधिकार नहीं
मिलकर हम इतिहास बदल भी सकते थे
प्रेम प्रतीकों को भी गर्वित कर देते
हमें तुम्हारा प्यार यदि मिल जाता तो
सौ जन्मों का पुण्य भी अर्पित कर देते…
प्रेम चाहे मिले या न मिले पर आधार से कोई समझौता नही – शालू राठी (देहरादून)
(RIHAN ANSARI 9927141966)